योग क्या है और योग के प्रकार के बारे में इस एक पोस्ट में बताना उसी तरह है जैसे की एक लौटे में समुद्र को भरना | शायद आप योग से मतलब सुबह जो बाबा रामदेव आसन मुद्राएं करवाते है उसे ही सम्पूर्ण योग समझते है | लेकिन मित्रों यह केवल योग का एक हिस्सा मात्र है | वास्तव में योग एक बहु आयामी और विस्तृत अर्थ को समेटे एक अलौकिक तत्व है जिसमें सब कुछ समाया है | आज उसी योग को जानने की हम कोशिश करेंगे |
योग क्या है ?
यदि आपको योग करते हुए परेशानी हो रही है मजा नहीं आ रहा है शरीर में दर्द हो रहा है या आपका मन नहीं लग रहा है तो यह समझ लीजिये की आप योग नहीं कर रहे है | योग का मतलब होता है जुड़ना | जब आपका तन और मन एकरूप होकर ध्यानस्थ हो जाता है तब की जाने वाली क्रियाएं योग कहलाती है |
सर्दी और गर्मी में, सुख दुःख में, मान और अपमान में जिस व्यक्ति की अंतःकरण की वृत्तियाँ भली भांति शांत है | ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्द गहन परमात्मा सम्यक प्रकार से स्थित है | जिसका अंतःकरण ज्ञान विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकाररहित है, जिसकी इन्द्रियाँ जीती हुई है | जिसके लिए पत्थर, मिट्टी और सुवर्ण सब समान है | वह ही असली रूप में योगी है और उसने ही योग के मर्म को समझा है |
योग साधना का स्वरूप कैसा होना चाहिए
मन और इन्द्रियों को वश में रखते हुए व्यक्ति आशा और संग्रह से रहित होकर एकांत में स्थित होकर अपना ध्यान लगाएं | ध्यान लगाने से पहले शुद्ध भूमि पर आसन बिछाए, आसन ना तो ऊँचा हो और ना ही नीचा हो | उस आसन पर बैठकर अपने चित्त और इन्द्रियों को वश में रखते हुए मन को एकाग्र रखते हुए अंतःकरण की शुध्दि के लिए योग का अभ्यास
करे |
योग के प्रकार
मुख्यतः योग
- राजयोग
- हठयोग
- मंत्रयोग
- कर्मयोग
- सांख्ययोग
- भक्तियोग
- कुण्डिलिनी योग
- लययोग
प्राचीन काल से आर्य महर्षियों ने मानव के कल्याण के लिए ऊपर दिए गए कई तरह के योग मार्ग प्रवर्त किये जिनके द्वारा मनुष्य अपने हेतु को प्राप्त करता है |
इन सभी योगों में सबसे प्रचलित योग है हठयोग | हठयोग में विभिन्न आसनों का प्रयोग किया जाता है और आज के समय हम योग को जिस रूप में जानते है वह हठ योग ही है | हठयोग के 4 अंग है –
- आसन
- प्रणायाम
- मुद्रा
- नादानुसंधान
हम जो भी आसन करते है वह आसन योग के अंतर्गत आते है | आसन योग के द्वारा हमारे शरीर में फैली हुई नाड़ियो कोमल होती है जिससे वे बेहतर तरीके से कार्य करती है | सहनशीलता में वृद्धि होती है, मन की एकाग्रता बढ़ती है, प्राणतत्व का ऊर्ध्वगमन होता है और शरीर के अनेक रोग दूर होते है |
अलग अलग आसनों के परिणाम भी अलग अलग ही होते है | प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अलग अलग होती है इसलिए उसे अपने लिए अनुकूल आसनों को मुख्य रूप से करना चाहिए बाकी आसनों को गौण रूप से करना चाहिए | कुछ आसन ऐसे ऐसे होते है जिन्हें आप रोजाना कर सकते है लेकिन कुछ आसन ऐसे होते है जिन्हें आपको मल आदि दोषों को दूर करने के लिए कुछ सिमित समय तक ही करना चाहिए |
योग कौन कौन कर सकता है
आसन योग रोगों को दूर करने और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने, शारीरिक एवं मानसिक क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से किये जाते है | कोई भी व्यक्ति चाहे वह बच्चा हो, युवा हो, व्यस्क हो या वृद्ध हो, महिला हो पुरुष हो सभी योग कर सकते है और इसका लाभ उठा सकते है |
मुख्य आसन योग
सिद्धासन –
मुख्यतः 84 तरह के आसन माने जाते है जिनमे सिद्धासन को सबसे श्रेष्ठ आसन माना जाता है | इस आसन में बाएं पाँव की एड़ी को योनिस्थान पर रखें और दाहिने पैर की एड़ी को सावधानी के साथ मूत्रेन्द्रिय पर रखे | ध्यान रखें की आपके वृषण और मत्रेंद्रिय को इससे किसी तरह की बाधा या दर्द ना हो | अब दोनों पैरों के आगे के भाग को जानु और उरु मध्य में रखें | इस पूरी आसन स्थिति को सिद्धासन कहते है |
इस आसन को करते हुए अपनी ठोड़ी को अपने कंठ के नीचे के भाग में लगाएं | इसे जालन्धरबन्ध कहते है | अपनी दृष्टि धरती पर रखें | अब गुदा को अंदर की और खींचे इसे मूलबन्ध की क्रिया कहते है | अपने दोनों हाथों को अपनी जानु यानि की जंघा पर रखें |
सिद्धासन योग के लाभ – सिद्धासन योग को करने से आपके स्वांस की स्थिति बेहतर होती है | पाचनक्रिया अच्छी होती है, हृदयरोग, जुकाम, खांसी, ज्वर, पेचिश, स्वप्नदोष, कमजोर शुक्राणु, अधिक बार पेशाब आना जैसे रोग दूर हो जाते है |
गुप्तासन
जिस व्यक्ति को भयंदर रोग हो या उसके वृषण स्थान में कोई परेशानी हो और जो सिद्धासन को करने में समर्थ ना हो उनके लिए गुप्तासन एक उत्तम विकल्प है | इस योग में अपने बाएं पाँव के पंजे को लिंग के ऊपर रखें और बाएं पाँव के ऊपर दाहिनें पाँव के पंजे को रखें | बाकी सभी स्थिति सिद्धासन के समान ही रखें |
लाभ – सिद्धासन करने पर होने वाले सभी लाभ गुप्तासन में भी मिलते है |
मुक्तासन
इस आसन के लिए अपने दोनों पैरो की एड़ियों को मिलाकर वृषण और गुदा के मध्य में रखें और अपनी दृष्टि और हाथो की स्थिति सिद्धासन के समान ही रखें | यह मुक्तासन की स्थिति कहलाती है | इस आसन को करने से आपके पैरों की नसें खींचती है और कुछ दिन परेशानी होती है लेकिन कुछ दिन में यह स्थिती आपके अभ्यास में आ जाती है |
लाभ – इस आसन को करने से आपके शरीर की नाड़ियाँ मुलायम होती है |
भद्रासन
इस आसन के लिए योनिस्थान के दोनों ओर दोनों पैरों की एड़ियों को रखें, इसमें दक्षिण भाग में दक्षिण एड़ी और बाएं भाग में बाईं एड़ी को रखें | यह आसन की स्थिति ही भद्रासन कहलाती है | मुक्तासन में तो पैरों का आगे का भाग आगे रहता है लेकिन भद्रासन में यह भाग पीछे की ओर मूड जाता है | इस आसन में दोनों हाथों से पीठ की ओर निकले हुए पैरों के अग्रभाग को और अपनी दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर जमाएं |
लाभ – इस आसन से पैरों की नसें मुलायम हो जाती है |
पद्मासन
यह सबसे लोकप्रिय आसन है और सामान्य रूप से भी हम कई बार इस आसन को बैठने के लिए करते है | इस आसन में अपने दाहिने पैर को अपनी बायीं जांघ पर रखें और बाएं पैर को दाहिनी जांघ पर रखें | इसमें आपको अपने दोनों पैरों की एड़ियों को नाभि तक लगा लें इस अवस्था में आपकी जंघाएँ धरती पर तिकी रहनी चाहिए | अपने दोनों हाथों को पीछे से ले जाते हुए अपने बाएं हाथ से अपने बाएं पैर का अंगूठा और दाहिनें हाथ से दाहिने पैर का अंगूठा पकड़ें | अपनी दृष्टि को अपनी नाक पर रखें |
प्राणायाम करने के लिए इस आसान को श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इसमें आपकी सुषुम्ना नाड़ी सीधी रहती है और आपकी श्वसनक्रिया नियमित रूप से सही होने लगती है |
पद्मासन योग के लाभ – इस योग को करने से ह्रदय, उदर रोग, स्वसन रोग, मल के अवरोध होने से पैदा होने वाले रोग, रक्त सबंधी रोग, खांसी, स्वांस, ज्वर आदि रोग दूर होते है |
निष्कर्ष
आशा है की योग क्या है और योग के प्रकार के इस लेख से आपको योग के बारे में जरुरी जानकारी मिल गयी होगी | योग से सबंधित इसी तरह की जानकारी हम आगे भी लाते रहेंगें | इस तरह की पोस्ट को यदि आप समर्थन देते है और इन्हें शेयर करते है तो इससे हमारा उत्साहवर्धन होता है और आगे नयी पोस्ट लाने में हमें जोश रहता है तो इसलिए इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें, धन्यवाद |